पांच आधारभूत
विषय
बालक के
सर्वांगीण विकास हेतु केन्द्रीय पाठ्यक्रम:- राष्ट्रीय एकात्मता एवं बालक के
सर्वांगीण विकास की दृष्टि से पांच विषयों के केन्द्रीय पाठ्यक्रम निर्धारित किये
गये है ।
(1) शारीरिक शिक्षा
(1) शारीरिक शिक्षा
(2)
योग शिक्षा
(3)
संगीत शिक्षा
(4)
संस्कृत शिक्षा
(5) नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा
(5) नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा
पांच
आधारभूत विषय
शारीरिक
शिक्षा
बालक
बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का
विकास हो, ऐसा बालक ही देश और धर्म
की रक्षा कर सकेगा. विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सभी बालक शारीरिक दृष्टि
से विकास करें, यह प्रयास एवं व्यवस्था की
जाती है. इसी दृष्टि से कक्षानुसार शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम विशेषज्ञों ने
बनाया है. शारीरिक शिक्षा का विशेष प्रशिक्षण देने के लिए क्षेत्रशः केंद्र
स्थापित किये गए हैं. विद्या भारती राष्ट्रीय खेल-कूद परिषद् का गठन किया जा रहा
है.
योग
शिक्षा
योग
विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या
भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास
से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक
विकास उत्तम रीति से होता है - यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक
प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं. जहाँ प्रयोग एवं
आचार्य प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलते हैं. एक राष्ट्रीय स्तर पर भी योग शिक्षा
संस्थान स्थापित करने की योजना विचाराधीन है.
नैतिक
एवं आध्यात्मिक शिक्षा
बालक
देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश कि प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित
है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों
की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह
पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के
अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य
लक्ष्य है
संस्कृत
भाषा
संस्कृत
भाषा की ही नहीं विश्व कि अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय
संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के
ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता
का सूत्र भी है. विद्या भारती ने इसी कारण संस्कृत भाषा के शिक्षण को अपने
विद्यालय में महत्वपूर्ण स्थान दिया है. विद्या भारती संस्कृत विभाग कुरुक्षेत्र
में स्थित है. इस विभाग ने सम्भाषण पद्धति के आधार पर "देववाणी
संस्कृतम" नाम से पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है. संस्कृत के आचार्यों का
प्रशिक्षण कार्यक्रम भी इस विभाग के द्वारा संचालित होता है.
संगीत
शिक्षण
संगीत
वह कला है जो प्राणी के हृदय के अंतरतम तारों को झंकृत कर देती है. उदात्त भावनाओं
के जागरण एवं संस्कार प्रक्रिया के माध्यम के रूप में संगीत का शिक्षण विद्या
भारती के सभी विद्यालयों में सारे देश में चलता है. उच्च स्तर के गीत कैसेट तैयार
कराए गए हैं. राष्ट्र भक्ति के गीतों का स्वर पूरे भारत में गूंजता है. जन्मदिवस
के उत्सव हेतु गीत-कैसेट तैयार कराया है जो घर-घर में बजता है. संगीत शिक्षण का
कक्षानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित है. सभी भारतीय भाषाओँ में गीत छात्रों में
प्रचलित हैं. भाषायें भिन्न हैं किन्तु भाव एक हैं. यह अनुभूति होती है
शिक्षण पद्दति
स्वामी विवेकानंद के अनुसार " मनुष्य के भीतर समस्त ज्ञान अवस्थित है , जरूरत है उसे जागृत करने के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करने की " शिक्षा की इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विद्यालय में शिक्षण भारतीय मनोविज्ञान के सिध्दान्तो पर आधारित पंचपदी शिक्षा पद्दति के द्वारा किया है।.
जिसके निम्नलिखित चरण है.
(1) अधीति - इसके अंतर्गत आचार्य निर्धारित विषय वास्तु को विधियों को अपनाते हुए छात्रो के सम्मुख प्रस्तुत करते है.
(2) बोध - कक्षा कक्ष में ही पठित विषय वास्तु का तात्कालिक लिखित, मौखिक और प्रायोगिक अभ्यास कराया जाता है, जिससे छात्रो को अपने अधिगम का ज्ञान होता है.
(3) अभ्यास - कक्षा कक्ष में सम्पन्न होने वाली अभीती और बोध की प्रक्रिया के पश्चात् छात्रो को विषय वास्तु का ज्ञान विस्तृत और स्थायी करने हेतु गृहकार्य दिया जाता है. जिसका विधिवत निरिक्षण और मूल्याङ्कन किया जाता है.
(4) प्रयोग और प्रसार - छात्र स्वप्रेरणा से अपने अनुसार कार्य करने में आनंद अनुभव करता है, इसलिए विभिन्न विषयों से सम्बंधित विविध पुस्तको, पत्र-पत्रिकाओ आदि सामग्री का अध्ययन कराया जाता है. जिससे छात्र अपने अर्जित ज्ञान का विस्तार व प्रसार करते है.
इसके अतिरिक्त छात्रो के सर्वांगीं विकास हेतु पंचमुखी शिक्षा व्यवस्था है जिसके निम्नलिखित अंग है.
(1) शारीरिक शिक्षा - बालक के शारीरिक विकास हेतु विभिन्न प्रकार के परंपरागत भारतीय खेल और आधुनिक खेल, व्यायाम-योग , आसन-प्राणायाम की व्यवस्था है विद्यालय में क्रिकेट, फ़ुटबाल , टेबल-तेनिश , बैत्मिन्तन , खो-खो, कबड्डी, जुडो, और अथलेटिक्स आदि खेलो के प्रशिक्षण की व्यवस्था है.
(2) मानसिक शिक्षा - छात्रो में विश्लेष्ण, स्मरण , तुलना, अनुमान, निरिक्षण और निष्कर्ष आदि गुणों का विकास मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधि से किया जाता है.
छात्र संसद:
छात्रो की प्रतिभा उन्नयन और नेतृत्व क्षमता का बीजारोपण करने हेतु छात्र संसद का गठन किया जाता है इसके साथ-साथ छात्र मंत्री परिषद् भी प्रति वर्ष चयनित होता है.
इसका कार्य कुशल छात्रो द्वारा विद्यालय की समस्त गतिविधियों में परामर्श देना , अन्य व्यवस्थाओ को देखना और अपने विभाग के उत्तरदायित्वो का निर्वाह कर विद्यालय प्रशासन में सहयोग देना है. इससे बालको में निर्णय लेने की छमता , प्रबंधन , सहयोग और कार्यकुशलता का गुण आता है. यह सब कार्य आचार्यो के निर्देशन में होता है.
मुख्य परिषद् है- विज्ञानं, साहित्य, और कला, सांस्कृतिक सामाजिक, पुस्तकालय, क्रीडा, अनुशासन, भोजन, वाहन चिकित्सा, और साज-सज्जा आदि.
प्रयोगशालाए :
विज्ञानं के साथ-साथ गणित, भूगोल जैसे विषयों के गहन अध्ययन हेतु प्रायोगिक शिक्षण एक आवश्यकता बन चूका है. इसी उद्देश्य की पूर्ती हेतु विद्यालय में भौतिक विज्ञानं रसायन विज्ञानं, जीव विज्ञानं , की प्रयोगशालाए है.
पुस्तकालय और वाचनालय :
पुस्तके मनुष्य की मित्र होती है। एक मनुष्य के जीवन में उस साहित्य का बड़ा ही महत्व होता है जिसे वह पड़ता है।
विद्यालय में एक सुव्यवस्थित विशाल पुस्तकालय और वाचनालय है। वाचनालय में समाचार पत्र और पत्रिका-पत्रिकाए नियमित आती है। छात्रों हेतु प्रत्येक विषय की सन्दर्भ पुस्तको सहित ज्ञान-विज्ञानं , मनोरंजन, प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ धार्मिक-आद्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक जीवन मूल्यों पर आधारित साहित्य भी अध्ययनार्थ उपलब्ध है।.
छात्र देनान्दिनी :
छात्र देनान्दिनी छात्र का दर्पण है , जिसमे उसके सभी क्रिया-कलाप प्रतिबिंबित होते है. अतः प्रत्येक छात्र दैनन्दिनी में उसकी दिनचर्या, गृहकार्य , सदाचार, उपस्थिति , पुस्तकालय की सूचनाये और परिवार व विद्यालय के बीच संपर्क आदि के विवरण अंकित किये जाते है।.
कम्प्यूटर शिक्षा :
कम्प्यूटर आज के तकनिकी युग का एक अभिन्न अंग बन चूका है। विद्यालय में कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षण के साथ कम्प्यूटर पर कार्य करने की जानकारी , कुछ विशेष साफ्ट्वेयरो का ज्ञान और इन्टरनेट आदि का ज्ञान भी कराया जाता है।
प्रमुख विशेषताएँ
शिक्षण योजना -
छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु विद्याभारती की योजनानुसार पंचमुखी शिक्षा की व्यवस्था यथा-
(क) शारीरिक शिक्षा (ख) मानसिक शिक्षा (ग) व्यावसायिक शिक्षा
(घ) नैतिक शिक्षा (ङ) आध्यात्मिक शिक्षा
बोर्ड एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में श्रेष्ठ परिणाम।
स्वच्छ, सुन्दर एवं आधुनिक साजसज्जा से युक्त सरस्वती नगर, केशव नगर परिसर में अपना भवन।
सुयोग्य एवं संस्कारित आचार्यों द्वारा नवीन मनोवैज्ञानिक विधियों को माध्यम से अध्यापन।
निर्धारित एवं नियमित गृहकार्य की व्यवस्था।
छात्र के सर्वांगीण मूल्यांकन हेतु "सतत् मूल्यांकन पद्धति" (C.C.E.) का प्रयोग।
सभी छात्रों के लिए खेलकूद की उत्तम व्यवस्था।
स्वाध्याय हेतु एक वृहत् पुस्तकालय एवं वाचनालय।
संस्कारक्षम वातावरण निर्माण की दृष्टि से जीवन में दैनन्दिन संस्कारों पर बल।
लेखन प्रतिभा के विकास हेतु छात्रों द्वारा हस्तलिखित पत्रिका एवं 'माधव दर्पण' सम्पादित करने की व्यवस्था।
छात्रों की अन्तःक्रियाओं एवं प्रवृत्तियों के विकास हेतु विभिन्न सहपाठ्य क्रियाकलापों एवं प्रयोग कार्यों पर बल यथा -
(क) व्यवस्था प्रियता, नागरिक बोध, वक्तृत्व शक्ति के विकास हेतु छात्र संसद की
व्यवस्था।
(ख) उत्तरदायित्व की भावना के विकास हेतु छात्र मंत्रिमण्डल का गठन।
(ग) विषयों के व्यावहारिक ज्ञान हेतु विभिन्न छात्र परिषदों का गठन।
सामाजिक एवं भौगोलिक ज्ञानार्जन हेतु देशदर्शन यात्रा, ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन, वन-विहार, छात्र शिविर एवं शैक्षिक प्रदर्शनी आदि के आयोजन की व्यवस्था।
अपनी मातृभूमि, संस्कृति, धर्म, परम्परा एवं महापुरुषों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करने हेतु संस्कृति ज्ञान परीक्षा की व्यवस्था।
छात्रों के समुचित विकास की जानकारी हेतु आचार्य एवं अभिभावक सम्पर्क तथा आवश्यकतानुसार अभिभावक सम्मेलन या अभिभावक गोष्ठी की व्यवस्था।
विद्यालय के प्रबन्ध समिति में शिक्षाविद्, अभिभावकों, समाजसेवी व्यक्तियों तथा आचार्यों का प्रतिनिधित्व।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (MPBSE) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार विषय।
नवम/दशम: हिन्दी, संस्कृत, अँग्रेजी, गणित, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान, वाणिज्य, कम्प्यूटर विज्ञान ।
एकादश (XI)/द्वादश (XII): हिन्दी, संस्कृत, अँग्रेजी, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित, जीव विज्ञान, व्यावसायिक अध्ययन, बहीखाता, कम्प्यूटर विज्ञान व अर्थशास्त्र।
छात्रों में वैज्ञानिक प्रतिभा विकास के लिए ‘विज्ञान भारती’ का गठन।
अध्ययन एवं अध्यापन में स्मार्ट क्लास का प्रयोग।
शीतल पेयजल की समुचित व्यवस्था।
नगर एवं गाँव के कोने-कोने से छात्रों के विद्यालय आने हेतु वाहन व्यवस्था।
छात्र एवं छात्राओं द्वारा विषय का चयनः
1. कक्षा एकादश में अध्ययन करने वाले छात्र-छात्रायें निम्न विषयों का चयन कर सकेंगे।
2. गणित वर्ग हेतु – अंग्रेजी, हिन्दी , गणित, भौतिकी, रसायन।
3. जीव विज्ञान वर्ग हेतु – अंग्रेजी, हिन्दी, भौतिकी, रसायन, जीव विज्ञान।
4. वाणिज्य वर्ग हेतु – अंग्रेजी, हिन्दी, कम्प्यूटर/अर्थशास्त्र, बहीखाता, व्यवसायिक अध्ययन।
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